बरसात की रात बहन के साथ



बात तब की है जब मेरी पत्नी अपने मायके गयी हुई थी और मैं पत्नी विहीन घर पर था l

काफी दिनों बाद भी वह वापस नहीं आ पा रही थी,

अब अकेलापन कटाने दौड़ रहा था ; आदमी को कुछ चीजो की

आदत हो जाती है और उनके विछोह में उनकी कीमत समझ में आती है,

अब पत्नी से विछोह त्रास देने लगा था l

उस दुनिया के इर्द गिर्द रहते हुए कभी भान भी नहीं होता

कि हम कितनी संजीदगी से उसमें खो जाते हैं l हम

मात्र उतना देखते हैं जितना हमारी आँख दिखाती हैं

रूह कब खो जाती हैं पता ही नहीं चलता l ये सोचकर

बेचैनी होती हैं कि किस भुलावे में हम जिंदगी को

बस रूटीन में जिए जाते हैं जीवन के सफर में कब

वह युवती हमसफ़र बन गयी कभी अहसास न हुआ l

पर कर भी क्या सकता था ,इंतजार के सिवा l

वही कर रहा था l और किसी तरह दिन तो कट

जाता था ,पर रात बैरन बनी थी .

कोई चाहत, कोई हसरत भी नहीं

क्यूँ सुकूँ दिल को मेरे फिर भी नहीं